मौत ने कहा-तुम्हारा बेटा अगर कोई जाने को राज़ी हो तुम्हारी जगह,तो मै उसको ले जा सकता हु .
ययाति अपने बेटो के आगे गिडगिडाने लगा,उसके सौ बेटे थे कोई 70 साल का कोई 80 साल का कोई 60 साल सभी कन्नी काट गए .
स्वभाविक था, जब सौ साल में बाप की इच्छा पूरी नहीं हुई तो भला 60-70 साल वालो की कैसे हुई होती सो सभी बेटे इधर उधर देखने लगे.
सिर्फ एक छोटा बेटा जो महज़ 20 साल का था, वो खड़ा हो गया उसने कहा 'मै तैयार हु ,मै जाता हु'.ययाति खुश हो गया लेकिन मौत को बहोत दया आई .
उसने कहा, उस बेटे से' तू सोच ले एक बार ,तू नासमझ मालूम होता है ,क्या तुझे ये नहीं सूझता की तेरा बाप सौ साल का होके भी नहीं मरना चाहता ,तेरे निन्यानबे भाई चुप बैठे है '.
उस बेटे ने बड़ी बहुमूल्य बात कही ,उसने कहा 'मै ये सोच के मरना चाहता हूँ की सौ साल के मेरे पिता हो गए ,इनकी इच्छाए पूरी नहीं हुई,तो अब 100 साल मै क्यों घिट्टे खाऊ ,
ये सौ का हो के गिडगिडा रहे है,सौ साल का होके मै भी गिडगिडाउ.इसलिए फिजूल का जीने से तो अच्छा है मै तुम्हारे साथ ही चलू,कम से कम ऐसा करने से पिता के किसी काम आने का संतोष तो होगा.
कहानी बड़ी दिलचस्प है,सौ साल बीत गए,बेटे की उम्र बाप को लगी,फिर मौत आई ययाति फिर गिडगिडाने लगा और ऐसा चलता रहा , कहते है ऐसा १० बार हुआ. 1000 साल का हो गया बूढा,तब फिर मौत आई,
पूछा ,अब क्या इरादे है.
ययाति हसने लगा कहा मै चलने को तैयार हु, इसलिए नहीं की मेरी सभी इच्छाए पूरी हो गयी बल्कि इसलिए की ये कभी पूरी हो ही नहीं सकती क्युकी ये जीवन एक ऐसा पात्र है जिसमे तलहटी नहीं है.
QUALITY MATTERS NOT QUANTITY
ये तो स्पष्ट है पर क्या ययाति का अपने बेटो के आगे गिडगिडाना जायज़ था,क्या उसे कालक्रम का सम्मान नहीं करना चाहिए था ..........
ऐसा ही एक प्रसंग महाभारत में भी देखने को मिलता है जब भीष्म अपने पिता दुष्यंत के इच्छापूर्ति के लिए ख़ुद आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने की प्रतिज्ञा कर लेते है.
सभी जानते है यदि ऐसा न हुआ होता तो कुरुक्षेत्र भी न हुआ होता ........
क्या पिताओ की हर इच्छा का सम्मान करना ज़रूरी है...रामायण में राम अपने पिता की आज्ञा का पालन करते हुए 14 वर्ष वनवास काटते है .वे जब लौट के आते है तो उन्हें रजा के सिहासन पर बैठाया जाता है
.दोनों ही मामले में पुत्रो ने पिता की आज्ञा का पालन किया ,लेकिन जहा रामायण में नतीजा गौरवपूर्ण था,वही महाभारत में इसका अंत दुखद था...ये फर्क कहा पैदा हुआ.
रामायण में पुत्र को वनवास के लिए इसलिए कहा गया ताकि पिता अपने वचन पुरे कर सके और शाही परिवार की एकता बनी रहे .महाभारत में भीष्म को ब्रह्मचर्य आजीवन इसलिए झेलनी पड़ी की
पिता सुख पा सके ......
तो यहाँ मुद्दा आज्ञाकारी होने का नहीं है.मुद्दा ये है की आज्ञाकारिता जड़व्यवस्था बनाये रखने में निहित है या ख़ुद को सुखी रखने की इच्छा में........
जहाँ रामायण में सर्वोच्च सन्दर्भ विन्दु वयवस्था का धर्म है वही महाभारत में सर्वोच्च सन्दर्भ विन्दु कर्म या आनंद है......
MOTIVE ALSO MATTERS.